जहाँ हम हाथियों की शारीरिक शक्ति या चीतों की तेज़ गति से परिचित हैं, वहीं एनिमल किंगडम में कई अनजाने या कम ज्ञात जानवर भी मौजूद हैं जिनके पास कई अद्भुत क्षमताएँ हैं।
आज हम जानेंगे कुछ ऐसे ही जानवरों के बारे में जो इन गुणों से लैस हैं।
जानेंगे कैसे होमिंग कबूतर अपने रास्तों को नेविगेट करते हैं? कैसे इलेक्ट्रिक
इल शक्तिशाली इलेक्ट्रिक शॉक पैदा कर सकती है। बात करेंगे इन विलक्षण जीवों के
संरक्षण के बारे में। तो आइए पढ़ते हैं:
![जहाँ हम हाथियों की शारीरिक शक्ति या चीतों की तेज़ गति से परिचित हैं, वहीं एनिमल किंगडम में कई अनजाने या कम ज्ञात जानवर भी मौजूद हैं जिनके पास कई अद्भुत क्षमताएँ हैं। मानवीय क्षमताओं को मात देते एनिमल किंगडम के कुछ खास जानवर](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6aaDJHoZwB6aOAA8K1_df_NtYCCJ41k_Qjq9jEK_xDHT4s6N6wtRBIRKqk023pHJcIrng2KKkxSwW374C9I549W7EBcSgaEXyCkDderc7w8n1xPqiAImTgb4xPqpDph15t8nl-2ducOUdDF4Z4oxw-xGimHaYpGmReQK2P9d64g36kPJPZR7VCZT9SvI/w640-h408-rw/1%20(1)%20(1).webp)
1. होमिंग पिजन (डाक कबूतर) की अद्भुत नेविगेशन क्षमता
कल्पना कीजिए की आपको हजारों मील दूर छोड़ दिया जाए और वापिस घर आने के लिए कहा जाए। आप कैसे आएंगे ? आज के दौर में हम अपने गंतव्य पर पहुँचने के लिए मैप, मोबाइल फ़ोन और जीपीएस जैसी तकनीकों का इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन होमिंग पिजन कैसे हजारों मील दूर अपना सन्देश पहुंचाकर वापिस अपने घर आ जाते हैं। जानते हैं पिजन के पास ऐसी कौन सी क्षमता है जो उन्हें नेविगेट करने में मदद करती है।
वैज्ञानिक मानते हैं की होमिंग पिजन के पास खुद का कंपास और मैप मैकेनिज्म होता है जो उन्हें नेविगेट करनेऔर घर पहुँचने में मदद करता है। कंपास सिस्टम उन्हें सही दिशा में उड़ने में मदद करता है जबकि मैप सिस्टम कुछ लैंडमार्क्स को पहचानने (जैसे कौन सा घर है या किस जगह पर उतरना है) में मदद करता है।
कुछ रिसर्चरस का मानना है की अन्य पक्षियों की तरह पिजन का कंपास सिस्टम भी सूर्य पर निर्भर करता है जैसे सूर्य की स्थिति और कोण को देखकर दिशा का अंदाजा लगाना। जबकि अन्य, कंपास सिस्टम में पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की भूमिका मानते हैं। रिसर्चरस ने पाया है कि पिजन की चोंच में आयरन पार्टिकल्स होते हैं जिससे यह मेगनेटिक फील्ड का सही अंदाजा लगा पाते हैं, ठीक किसी कंपास की तरह। जबकि मैप सिस्टम का विकास अभी थोड़ा रहस्य का विषय है।
होमिंग पिजन का प्राचीन मिस्र के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। साथ ही प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में भी इनकी भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता जहां कई पिजनस को मैडल भी मिले हैं।
2. इलेक्ट्रिक ईल के चौंकाने वाले शॉक
इलेक्ट्रिक ईल करंट पैदा करने वाले जीवों में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं। यह मछलियां नेविगेशन और शिकार करने के लिए शक्तिशाली इलेक्ट्रिक शॉक पैदा कर सकती हैं। यह 600 वॉल्ट तक का शक्तिशाली करंट पैदा करके अपने शिकार को अचेत कर सकती है।
इलेक्ट्रिक शॉक को पैदा करने में इलेक्ट्रिक ईल इलेक्ट्रोसाईटस (Electrocytes) की मदद लेती है जिनसे इसके शरीर का लगभग 80% हिस्सा बना होता है। यह तीन तरह की विशेष कोशिकाएँ हैं जो छोटी-छोटी बैटरीज की तरह काम करती हैं। सोडियम और पोटाशियम आयन का इन इलेक्ट्रोसाईटस में तेज स्थानांतरण विभिन्न तीव्रताओं वाले इलेक्ट्रिक शॉक पैदा करता है।
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जब इलेक्ट्रिक ईल मेटिंग या शिकार नहीं कर रही होती तो यह पानी में आराम करना और खुद को 'रिचार्ज' करना पसंद करती हैं। शॉक पैदा करने में इनकी बहुत सारी ताकत नष्ट हो जाती है। फिर से इलेक्ट्रिक शॉक रिलीज़ करने के लिए इन्हे खुद को 'रिचार्ज' करना पड़ता है।
3. गहरे समुद्र के बायोलुमिनेसेन्स (रोशनी वाले) जीव
आपने गहरे समुद्र के कई जीवो को देखा होगा जो अँधेरे में खुद की रौशनी पैदा करके शिकार करते हैं। एंग्लेरफिश, वैम्पायर स्क्विड, गोस्सैमर वर्म और मिडवाटर जेलिफ़िश जैसे कई अन्य समुद्री जीव रौशनी पैदा करने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। अपनी खूबियों का उपयोग यह जीव शिकार करने, दूसरे जीवों से कम्यूनिकेट करने और शिकारियों से खुद को सुरक्षित रखने के लिए करते हैं।
दरअसल इन जीवों द्वारा लाइट पैदा करना एक केमिकल रिएक्शन का परिणाम है। जिसे बायोलुमिनेसेन्स कहते हैं। बायोलुमिनेसेन्स एक तरह का कैमिलुमिनेसेन्स (Chemiluminescence) है जिसका मतलब है जीवित जीवों द्वारा केमिकल रिएक्शन से रौशनी पैदा करना। बायोलुमिनेसेन्स के लिए दो यूनीक रसायनों - लूसिफेरिन (Luciferin) और लुसिफेरेस (Luciferase) अथवा फोटोप्रोटीन (Photoprotein) की ज़रूरत पड़ती है। वास्तव में लूसिफेरिन ही रौशनी उत्पन्न करता है। रौशनी का रंग लूसिफेरिन के अणुओं की व्यवस्था के कारण होता है। जैसे - जुगनू की रौशनी पिली होती है और लालटेन फिश की रौशनी हरी होती है।
4. छिपने और रंग बदलने में माहिर ऑक्टोपस और कटलफिश
समुद्र में अलग-अलग क्षमताओं के साथ असंख्य जीव मौजूद हैं जो अपनी विशेषताओं से सबका ध्यान अपनी और खींचते हैं। हमने पढ़ा कैसे इलेक्ट्रिक ईल 600 वॉल्ट तक की शॉक वेव पैदा कर सकती है ? कैसे कुछ जीव शिकार और मेटिंग के लिए लाइट पैदा करते हैं ? समुद्र में इन जीवों के साथ-साथ कुछ ऐसे जीव भी हैं जो खुद को अपने आस - पास के वातावरण में छिपाने में माहिर होते हैं तथा दूसरे जीवों की नक़ल भी करते हैं।
इनमें प्रमुख हैं ऑक्टोपस और कटलफिश। दोनों ही सेफ्लोपोड (जो जीव सेफ्लोपोडा वर्ग से संबंध रखते हैं जैसे स्क्विड, ऑक्टोपस, कटलफिश और नॉटिलस) हैं।
इन जीवों में अपनी त्वचा के रंग को अपने आस-पास के वातावरण में ढालने की क्षमता होती है। इसके लिए उत्तरदायी होते हैं कई हजारों कलर चेंजिंग सेल्स जिन्हे क्रोमैटोफोरेस कहते हैं जो स्किन सरफेस के ठीक नीचे मौजूद होती हैं। हर एक क्रोमैटोफोरेस के केंद्र में पिग्मेंट से भरी एक लचीली थैली होती है जो काले, भूरे, संतरी या लाल रंग की हो सकती है। इन थैलियों को निचोड़ कर या फैला कर ही ऑक्टोपस और कटलफिश अपना रंग बदलते हैं। यह खूबी इन्हे दूसरे शिकारियों से बचने या शिकार करने में मदद करती है।
5. चिंटियों की सुपर-स्ट्रेंथ
चींटियां भले ही छोटी लगती हों लेकिन अपने आकार के हिसाब से यह कई गुना शक्तिशाली होती हैं। कुछ मजदूर चींटियां अपने वजन से 50 गुना अधिक वजन उठा सकती हैं। इस काम में इनके शरीर की बनावट भी महत्वपूर्ण योगदान देती है। इनका कंकाल (स्केलटन) शरीर से बहार होता है जिस से मांसपेशियों को इसे उठाने में अधिक जोर नहीं लगाना पड़ता फलस्वरूप वजन उठाने के लिए मांसपेशियों के पास अधिक शक्ति बच जाती है जो इन्हे अधिक वजन उठाने में काम आती है। इसके आलावा इनके शारीरिक जोड़ भी काफी मजबूत होते हैं।
चींटियों के पास वजन उठाने के आलावा तेज गति की सौगात भी है। सहारन सिल्वर चींटी अपने शरीर की लंबाई से 100 गुना की दूरी एक सेकंड में पूरी कर सकती है। यह 180 सेमी के किसी इंसान के लिए 200 मी/सेकंड (या 720 किमी/घंटा) होगी। दुनिया के सबसे तेज धावक उसेन बोल्ट भी अधिकतम 47 किमी/घंटा की ही स्पीड पकड़ सकते हैं।
6. चमगादड़ों और डॉल्फिंस की इकोलोकशन क्षमता
इकोलोकशन एक ऐसी तकनीक है जो चमगादड़ों और डॉल्फिंस द्वारा दूसरे जीवों के शिकार, खुद की रक्षा और अंधेर में नेविगेट करने के लिए प्रयोग में लाई जाती है। इसकी मदद से डॉल्फिंस और चमगादड़ दुश्मनों, दोस्तों और अवरोधों की पहचान करती हैं। इकोलोकशन एक हाई पिच साउंड है जो ऑब्जेक्ट से टकराकर वापिस आती है। इन रिटर्निंग वेव्स की मदद से ही यह प्राणी खतरे या शिकार का अंदाजा लगते हैं। चमगादड़ अपने ध्वनियंत्र से साउंडवेव बनाकर मुख से उत्सर्जित करती हैं और इनकी रिटर्निंग पोजीशन को रीड करती हैं। यह ध्वनि तरंगे इतनी तेज होती हैं की मनुष्य की सुनने की क्षमता से बहार हैं। यह लगभग 120 किलो-हर्ट्ज तक हो सकती हैं और हम केवल 20 किलो-हर्ट्ज तक ही सुन सकते हैं।
इकोलोकशन एक तरह का बायोसोनार सिस्टम है जो मानवनिर्मित सोनार या राडार सिस्टम को भी मात दे सकता है।
हमारे ग्रह में कई दुर्लभ और उपर्लिखित विशेष क्षमताओं वाले जीव-जंतु मौजूद हैं जिन्होंने अपनी काबिलियत के बल पर अपने अस्तित्व हो बनाये रखा है लेकिन ख़त्म होते प्राकृतिक आवास, प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं की वजह से इनके अस्तित्व के लिए खतरा बना हुआ है। हमे समय रहते इनकी सुरक्षा के ठोस कदम उठाने होंगे ताकि आने वाली पीढ़ियां इनसे वास्तव में रूबरू हो सकें ना कि इनकी कहानियां केवल किताबों तक ही सिमित हो जाएँ। खाद्य श्रृंखला में हर जीव का अपना योगदान है। मेरा सभी पाठकों से भी निवेदन रहेगा की जीव संरक्षण में अपना योगदान अवश्य दें आपका एक छोटा कदम बड़ा परिवर्तन ला सकता है। हमारे ग्रह में मौजूद जीवन की असीम संभावनाओं को हमे बरकरार रखना होगा।
साथ ही लेख के प्रति अपने विचार कमेंट सेक्शन में अवश्य लिखें। आपकी
सकारात्मक प्रतिक्रिया मुझे इस तरह की और भी रोचक जानकारियां इक्कठा करने
के लिए प्रोत्साहित करेगी।
So nice information write more ...
ReplyDeleteBahut achha likha hai bhai, likte raho ese hi
ReplyDeleteSo nice, thanks for collecting such Information
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