13 अप्रेल 1919, जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में रोलेट एक्ट के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रही सभा पर अंधाधुन्द गोलीबारी कर भीषण नरसंहार को अंजाम दिया। यह इतिहास की एक निर्मम घटना है। इसमें आधिकारिक आंकड़ों के हिसाब से 350 से 400 लोगों की जान चली गयी। अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए। क्रूर जनरल ने बच्चों तक पर गोलियां चला दी थी। बाग चारों ओर से बंद था और निकलने का केवल एक ही रास्ता था जहां डायर अपने 90 सैनिकों के साथ खड़ा था। लोगों के बचकर निकलने का कोई रास्ता नहीं था। कुछ लोग डर कर बाग में मौजूद कुएं में कूद गए। बाद में लगभग 100 से ज्यादा शव अकेले कुएं से निकाले गए थे। घटना से पूरे देश में रोष उत्पन्न हो गया और अंग्रेजी हुकूमत के पतन की शुरुआत भी हो गई। घटना से अंग्रेजी सरकार की जड़ें भी हिल गई और डायर को पद से हमेशा के लिए हटा दिया गया।
डायर की मुलाकात लेफ्टिनेंट-जनरल सर हैवलॉक हडसन से हुई, जिन्होंने उसे बताया था कि वह अपनी सेवाओं से मुक्त हो गया है। उसे भारत के कमांडर-इन-चीफ, जनरल सर चार्ल्स मोनरो द्वारा बाद में अपने पद से इस्तीफा देने के लिए कहा गया था।
डायर ने स्वर्ण मंदिर में पुजारी को सिख धर्म में उसका फर्जी रूपांतरण करने और सम्मान देने के लिए मजबूर किया। यहां तक कि उसने पत्रकारों को प्रमाण के रूप में तस्वीरें लेने के लिए भी तैयार किया था। यह सिखों और अन्य समुदायों के लोगों का समर्थन वापस पाने के लिए था ताकि वह इसे अपने उच्च अधिकारियों को दिखा सके।
अपने कुकर्मों की सज़ा के रूप में डायर को अपने जीवन के अंतिम वर्षों में कई बार स्ट्रोक आए और इससे उसे पक्षाघात हुआ तथा बोलने में भी असमर्थ था। 1927 में सेरेब्रल हैमरेज से उसकी मृत्यु हो गई।
घटना का बदला लेने के लिए उधम सिंह ने पंजाब के उपराज्यपाल माइकल ओ'डायर को मार डाला जिन्होंने जनरल डायर को जलियांवाला बाग नरसंहार के साथ आगे बढ़ने की अनुमति दी और इसका समर्थन किया था।
Source: Wikipedia & Quora.com